Noida News : 32 साल पहले रिटायर्ड सब- पोस्ट मास्टर ने किया था 1,575 रूपए का गवन,रकम लौटाने के बावजूद भी न्यायालय ने सुनाई 3 साल की सजा

Nov 3, 2025 - 22:51
Noida News : 32 साल पहले रिटायर्ड सब- पोस्ट मास्टर ने किया था 1,575 रूपए का गवन,रकम लौटाने के बावजूद भी न्यायालय ने सुनाई 3 साल की सजा

Noida News : जनपद गौतम बुद्ध नगर की एक अदालत ने 32 साल पहले हुए मनी ऑर्डर फ्रॉड के मामले में एक रिटायर्ड सब-पोस्टमास्टर को 3 साल के कारावास की सजा सुनाई है। कोर्ट ने दोषी पर 10 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया है। जुर्माना नहीं भरने पर एक साल की अतिरिक्त जेल की सजा भुगतनी होगी। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गबन की रकम लौटाने से अपराध खत्म नहीं हो जाता।

एडिशनल चीफ ज्यूडिशियल मजिस्ट्रेट (एसीजेएम-I) मयंक त्रिपाठी की कोर्ट ने यह आदेश पारित किया है। कोर्ट ने जनपद हापुड़ के पिलखुवा इलाके के रहने वाले आरोपी रिटायर्ड सब-पोस्टमास्टर महेंद्र कुमार को आईपीसी की धारा 409 (सरकारी कर्मचारी द्वारा आपराधिक विश्वासघात) और 420 (धोखाधड़ी) के तहत दोषी ठहराया है।

कोर्ट ने राम शंकर पटनायक बनाम उड़ीसा राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के 1988 के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि गबन की गई रकम वापस करने से अपराध खत्म नहीं हो जाता।आदेश में कहा गया है, "एक बार जब आपराधिक विश्वासघात का अपराध साबित हो जाता है, तो गबन की गई रकम या सौंपी गई संपत्ति वापस करने से अपराध खत्म नहीं होता। अगर दोषी गबन की गई रकम वापस कर देता है, तो कोर्ट सजा कम कर सकता है।"

अभियोजन पक्ष के अनुसार, यह मामला 12 अक्टूबर 1993 का है, जब नोएडा के सेक्टर 15 के रहने वाले अरुण मिस्त्री ने बिहार के समस्तीपुर में अपने पिता मदन महतो को 1,500 रुपये का मनी ऑर्डर भेजा था। उस समय महेंद्र कुमार नोएडा के सेक्टर 19 के एक पोस्ट ऑफिस में सब-पोस्टमास्टर के पद पर तैनात थे।आरोप था कि महेंद्र कुमार ने 1,500 रुपये और 75 रुपये कमीशन के साथ कुल 1,575 रुपये लिए, लेकिन उसे सरकारी खाते में जमा नहीं किया। इसके बजाय उसने मिस्त्री को एक जाली रसीद दे दी। जब पैसे पाने वाले को पैसे नहीं मिले तो मिस्त्री ने 3 जनवरी, 1994 को पोस्ट ऑफिस सुपरिटेंडेंट सुरेश चंद्र से इसकी शिकायत की।

एक आंतरिक जांच में पता चला कि 1,575 रुपये सरकारी खाते में जमा नहीं किए गए थे और रसीद भी नकली थी। इसके बाद सुपरिटेंडेंट सुरेश चंद्र ने थाना सेक्टर 20 में महेंद्र कुमार के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई। डिपार्टमेंटल जांच के दौरान महेंद्र कुमार ने अपनी गलती मान ली और 8 फरवरी 1994 को गबन की गई रकम जमा कर दी। इसके साथ महेंद्र ने लिखित में कहा कि अगर भविष्य में ऐसे और भी मामले सामने आते हैं तो वह ऐसी कोई भी रकम वापस कर देगा। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अभियोजन ने आरोपों को बिना किसी शक के साबित कर दिया है।कोर्ट ने सजा सुनाते हुए कहा, "एक सरकारी कर्मचारी से सबसे ज्यादा ईमानदारी और सच्चाई से काम करने की उम्मीद की जाती है। ऐसे अपराध न केवल सरकारी सिस्टम को कमजोर करते हैं बल्कि लोगों का भरोसा भी कम करते हैं।